भारत की अफगान नीति : बदलती दुनिया को नया संदेश: डॉ. सुदीप शुक्ल

इन दिनों अपनी भारत यात्रा में अफगानी विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तनकी जिस तरह अच्छीफ हिन्दीा और पश्तो में संवाद कर रहे हैं उससे नई दिल्ली और काबुल के बीच संबंध और संवाद की गंभीरता का पता चलता है। मुत्तीकी की यात्रा किसी अन्या देश के विदेश मंत्री की भारत यात्रा की तुलना में कहीं अधिक चर्चा में है और इसने दुनिया का ध्यािन खींचा है। विदेश मंत्री मुत्तीकी को मिले स्वा गत और सम्मान ने कूटनीतिक विश्लेवषकों को आश्चतर्यचकित किया है। वहीं भारत की अफगान नीति बदलते विश्व को एक नया संदेश है।
काबुल दशकों से बड़े देशों की शक्ति स्थापना की लालसा का केंद्र बिंदु रहा है। दोहा समझाौते के बाद अमेरिकी सेनाओं की वापसी और पुन: तालिबान के सत्ताक में आने पर जब पूरा विश्व असमंजस में था, तब भारत ने एक बार फिर अपने संतुलित और मानवीय दृष्टिकोण से विश्व को चौंकाया। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि किसी भी देश की विदेश नीति केवल रणनीतिक हितों तक सीमित नहीं होती, बल्कि उसमें नैतिकता, संवाद और मानवता का गहरा स्थान भी है। मुत्तकी की भारत यात्रा ने इस नीति को नया आयाम दिया है। यह यात्रा महज औपचारिक शिष्टाचार का हिस्सा नहीं है, बल्कि दक्षिण एशिया में बदलते समीकरणों की दिशा तय करने वाली एक ऐतिहासिक घटना बन गई है।
मुत्तकी को भारत आने की अनुमति संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति से मिली, जो अपने आप में यह संकेत था कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब अफगानिस्तान के साथ संवाद की संभावनाओं को पूरी तरह खारिज नहीं कर रहा। नई दिल्ली में उनके आगमन पर भारत के विदेश मंत्रालय ने भी स्पष्ट किया कि यह बातचीत अफगानिस्तान की जनता के हित, क्षेत्रीय सुरक्षा और मानवीय सहायता पर केंद्रित है। यह सत्ता से नहीं, जनता से संवाद का वही दृष्टिकोण है जिसे भारत ने 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद अपनाया था!
भारत ने बीते दो दशकों में अफगानिस्तान में जिस स्तर का विकास कार्य किया, वह किसी भी सैन्य हस्तक्षेप से अधिक प्रभावी रहा। सलमा डैम, अफगान संसद भवन, जरांज.डेलाराम राजमार्ग जैसी परियोजनाओं ने न केवल अफगान जनता के जीवन स्तर को बदला, बल्कि भारत को वहां के लोगों के बीच गहरी स्वीकार्यता भी दिलाई। तालिबान शासन आने के बाद जब अधिकांश देशों ने अपने दूतावास बंद कर लिए तब भारत ने मानवीय सहायता का सिलसिला जारी रखा। खाद्यान्न, दवाइयां और कोविड वैक्सीन भेजकर दिखाया कि कूटनीति का मूल उद्देश्य जनता का कल्याण है, सत्ता परिवर्तन का मूल्यांकन नहीं।
भारत ने अपनी विदेश नीति में यह संतुलन साधा है कि वह तालिबान को औपचारिक मान्यता दिए बिना भी संवाद और विकास के दरवाजे खुले रखे। मुत्तकी की भारत यात्रा इस नीति की स्वाभाविक परिणति है। यह संकेत देती है कि दोनों देशों के बीच अब केवल आपातकालीन संवाद नहीं, बल्कि दीर्घकालिक साझेदारी की संभावना बनने लगी है। इस नीति ने न केवल दक्षिण एशिया में नई सोच को जन्म दिया है, बल्कि चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के प्रभाव क्षेत्र में भी भारत को एक वैकल्पिक शक्ति के रूप में स्थापित किया है।
जैसे-जैसे भारत और अफगानिस्तान के बीच संवाद का स्तर बढ़ रहा है, पाकिस्तान की बेचैनी भी बढ़ती जा रही है। पाकिस्तान लंबे समय से अफगान मामलों पर अपना प्रभाव बनाए रखना चाहता रहा है। उसके लिए तालिबान शासन हमेशा रणनीतिक गहराई का प्रतीक रहा, किंतु अब वही तालिबान धीरे-धीरे अपने राजनीतिक क्षितिज को विस्तारित कर रहा है। पाकिस्तान को यह स्वीकार करना कठिन लग रहा है कि काबुल अब इस्लामाबाद की शर्तों पर नहीं, बल्कि अपनी स्वायत्त विदेश नीति के तहत कदम बढ़ा रहा है।
पिछले कुछ हफ्तों में पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमाओं पर हुए संघर्ष इसी मानसिकता का परिणाम हैं। पाकिस्तान ने टीटीपी तहरीक.ए.तालिबान पाकिस्तान पर कार्रवाई के बहाने अफगान क्षेत्रों पर हवाई हमले किए, जिसके जवाब में अफगान सेना ने भी सीमावर्ती चौकियों पर प्रतिकार किया। दोनों देशों ने एक दूसरे पर सीमा उल्लंघन का आरोप लगाया। यह झड़पें बताती हैं कि तालिबान शासन अब पाकिस्तान के प्रभुत्ववादी संबंध स्वीकार करने को तैयार नहीं है। इस टकराव के बीच जब अमीर खान मुत्तकी भारत पहुंचे हैं, तो यह अपने आप में कूटनीति की नई परिभाषा है क्योंकि यह यात्रा पाकिस्तान की नाराजगी और दबाव के बावजूद हुई है।
भारत ने इन घटनाओं के बीच जिस संयम और संतुलन का परिचय दिया है, वह उसकी परिपक्व कूटनीति का प्रमाण है। नई दिल्ली ने इस अवसर को पाकिस्तान विरोधी मंच के रूप में नहीं, बल्कि अफगान जनता के साथ विश्वास बहाली के अवसर के रूप में देखा। यही कारण है कि भारत ने मुत्तकी से हुई बातचीत में मानवतावादी सहायता, शिक्षा, व्यापार और स्वास्थ्य सहयोग को प्राथमिकता दी। भारत जानता है कि अफगानिस्तान में स्थिरता उसके लिए केवल सुरक्षा का प्रश्न नहीं, बल्कि क्षेत्रीय शांति और आर्थिक समृद्धि का भी आधार है।
भारत की अफगान नीति का एक बड़ा संदेश यह भी है कि भारत अपनी विदेश नीति को अब केवल पश्चिमी दृष्टिकोण के सहारे नहीं चला रहा। उसने यह सिद्ध किया है कि एशिया के भीतर भी एक स्वतंत्र, नैतिक और व्यवहारिक कूटनीति संभव है। चीन-पाकिस्तान की सीपीईसी कूटनीति के समानांतर भारत की मानव-केंद्रित कूटनीति उभर रही है, जिसमें सडक़ें और परियोजनाएं केवल आर्थिक लाभ नहीं, बल्कि राजनीतिक विश्वास का प्रतीक बन रही हैं। भारत-अफगान संबंधों का यह मॉडल दुनिया के लिए एक उदाहरण है कि बिना सैन्य दखल के भी किसी अस्थिर क्षेत्र में स्थिरता लाई जा सकती है।
तालिबान शासन को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब भी विभाजित है। पश्चिमी देश मानवाधिकारों और महिलाओं की स्थिति को लेकर कठोर रुख अपनाए हुए हैं। इधर भारत का दृष्टिकोण है कि संवाद बंद कर देने से समस्याएं नहीं सुलझतीं। उसने यह भी स्पष्ट किया है कि मान्यता का प्रश्न केवल समय का नहीं, बल्कि व्यवहार और आचरण का भी है। यदि अफगानिस्तान में शासन व्यापक और समावेशी बने, आतंकवाद का समर्थन बंद हो और मानवाधिकारों का सम्मान हो, तो भारत भविष्य में अधिक औपचारिक रिश्तों की दिशा में बढ़ सकता है।
मुत्तकी की यात्रा इस संभावना को मजबूत करती है कि दोनों देश क्षेत्रीय सहयोग, व्यापार मार्गों और निवेश योजनाओं में साझेदारी बढ़ा सकते हैं। अफगानिस्तान के लिए भारत एक ऐसा साझेदार है, जो बिना राजनीतिक दबाव और सैन्य उपस्थिति के भी वास्तविक विकास कर सकता है। वहीं भारत के लिए अफगानिस्तान केवल भौगोलिक पड़ोसी नहीं, बल्कि मध्य एशिया के द्वार के रूप में रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यदि यह साझेदारी आगे बढ़ती है तो यह चीन-पाकिस्तान धुरी को संतुलित करने में भी भारत के लिए एक मजबूत साधन बन सकती है।
विश्व राजनीति में शक्ति प्रदर्शन की जगह विश्वसनीय साझेदारी का दौर शुरू हो रहा है, ऐसे समय में भारत की अफगान नीति उसकी विदेश नीति की नई पहचान है। यह नीति किसी साम्राज्य विस्तार की नहीं, बल्कि मानव विकास की बात करती है। यह उन देशों के लिए एक संदेश है जो यह मानते हैं कि हथियार और आर्थिक दबाव ही प्रभाव का माध्यम है। ृभारत ने दिखाया है कि संवेदनशील संवाद और सतत सहयोग भी शक्ति का ही रूप हैं।
अफगान विदेश मंत्री की यह यात्रा केवल एक कूटनीतिक घटना नहीं, बल्कि एक ऐसे भारत की प्रतीक है जो अपनी शांत शक्ति से विश्व राजनीति में सम्मान अर्जित कर रहा है। पाकिस्तान की नाराजगी और चीन की शंकाओं के बावजूद भारत-अफगान रिश्तों का यह नया दौर दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता की दिशा में एक ठोस कदम है। भारत ने यह साबित किया है कि वह न तो किसी गुट में शामिल है, न ही किसी शक्ति का विरोधी, बल्कि वह अपनी स्वतंत्र नीति के बल पर एक ऐसा पुल बन रहा है जो संघर्ष और संवाद के बीच संतुलन कायम कर सकता है। यही है भारत की नई अफगान नीति का सार, जिसने दुनिया को यह नया संदेश दिया है कि आधुनिक कूटनीति का अर्थ अब शक्ति से अधिक, संवेदनशीलता और जिम्मेदारी है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार)