सिद्धपुर धरा पर आ रही भ्रष्टाचार की गंध… कोई सुनने वाला नहीं, कोई कार्रवाई नहीं?

सीहोर। जिले में सरकारी विभागों का सिस्टम पूरी तरह से बेलगाम हो चुका है। भ्रष्टाचार अपने चरम पर है और शिकायतों पर कोई सुनवाई या कार्रवाई नहीं हो रही है। हाल ही में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जो प्रशासन की साख पर सवाल खड़े कर रहे हैं। कुल मिलाकर इस सिद्धपुर की पावन की धरा पर भ्रष्टाचार की गंध आ रही है, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं, कोई बोलने वाला नहीं, कोई कारवाई नहीं…!
पंजीयक कार्यालय में ‘ड्राइवर राज’
जिले के पंजीयक कार्यालय में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां जिला पंजीयक की कुर्सी पर उनका निजी ड्राइवर रवि सोलंकी बैठकर सरकारी कामकाज संभालता है। वेंडरों का आरोप है कि सोलंकी रजिस्ट्री में कमियां निकालकर उनसे अवैध वसूली करता है और मिलीभगत का दबाव बनाता है। इस मामले के उजागर होने के 15 दिन बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। उल्टा इस मामले को बाहर लाने के शक में एक कर्मचारी का तबादला कर दिया गया।
कृषि विभाग में फर्जीवाड़े का खेल…
कृषि विभाग भी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा है। राष्ट्रीय तिलहन योजना के तहत वैल्यू चयन पार्टनर योजना में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होने की शिकायत की गई है। किसानों को 75 किलो की जगह 60 किलो बीज दिया गया और उसके लिए भी उनसे पैसे वसूले गए। इसके अलावा जिला कृषि आदान विक्रेता संघ ने उपसंचालक कृषि अशोक उपाध्याय और उनके अधीनस्थ अधिकारी अनिल जाट पर अवैध वसूली का आरोप लगाया है। संघ का कहना है कि ये अधिकारी जांच के नाम पर छापे मारकर कृषि आदान विक्रेताओं से 50 हजार से 1 लाख रुपये तक की वसूली कर रहे हैं। एक मामले में तो 10 लाख रुपये की रिश्वत लेकर सील की गई दुकान को फिर से खोल दिया गया, जो बाद में विवादों में आने पर वापस लेनी पड़ी।
खेल प्रतियोगिता में टेंडर घोटाला…
जिले में आयोजित राज्य स्तरीय शालेय खेलकूद प्रतियोगिता भी विवादों में है। मध्यप्रदेश टेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने लाइट और टेंट की टेंडर प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। एसोसिएशन का आरोप है कि टेंडर की शर्तें इस तरह से बनाई गई हैं कि केवल एक ही फर्म को फायदा मिल सके। इसमें 50 लाख से 1 करोड़ रुपये के वार्षिक टर्नओवर और कर्मकार मंडल रजिस्ट्रेशन जैसी गैर.जरूरी शर्तें रखी गईं, जिससे छोटे व्यापारियों को बाहर कर दिया गया। शिकायत के बावजूद जिला शिक्षा अधिकारी संजय सिंह तोमर का कहना है कि टेंडर प्रक्रिया नियमों के अनुसार ही हुई है। इन सभी मामलों ने जिले के सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं… कोई बोलने वाला नहीं….
बच्चों के पेट पर डाका, एफआईआर की जगह वसूली!
जिले में बच्चों को दिए जाने वाले मध्यान्ह भोजन (मिड-डे-मील) में भी भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ है। मुख्यालय के नजदीकी हीरापुर गांव के स्कूल में घटिया और अनियमित भोजन परोसने की शिकायत के बावजूद दोषी स्व सहायता समूह और शाला प्रभारी पर कोई एफआईआर नहीं की गई। सरकारी जांच में यह स्पष्ट होने के बाद भी कि नियमों का उल्लंघन किया गया, जिम्मेदारों पर आपराधिक कार्रवाई करने के बजाय, केवल वसूली की कार्यवाही प्रस्तावित की गई है। आदेशों की बार-बार अनदेखी की गई और समूह को हटाने में भी लापरवाही बरती गई। कुल मिलाकर अब सिस्टम मासूम बच्चों के निवाले पर भी डाका डालने में परहेज नहीं कर रहा है।