कार्बाइड गन : बच्‍चों की आंखों की रोशनी छीनने का जिम्‍मेदार कौन?: डॉ. सुदीप शुक्‍ल

दीपावली के अगले दिन मैं अपने डॉक्‍टर मित्र के निवास पर था। उन्‍होंने बताया कि दीपावली की रात कई बच्‍चों की आंखों की रोशनी प्रभाव‍ित हुई है। ऐसा कार्बाइड गन नाम के अमानक और असुरक्षित खिलौने से हुए विस्‍फोट के अलग-अलग हादसों के कारण हुआ। केवल मध्‍यप्रदेश में 320 से अधिक बच्चों और युवाओं की आंखें जुगाड़ से बनी कार्बाइड गन के कारण बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं। भोपाल में 189 और विदिशा जिले में लगभग पैंतीस बच्चों की आँखें प्रभावित हुई हैं। यह आंकड़ा केवल संख्या नहीं, बल्कि उन परिवारों की पीड़ा का प्रमाण है जिनका जीवन अंधकारमय हो गया है। इन दुर्घटनाओं के जिम्‍मेदारों को तलाशने और उन पर कड़ी कार्रवाई करने की आवश्‍यकता है।

कार्बाइड गन कोई सामान्य खिलौना नहीं है। यह दिखने में भले ही बच्चों को सामान्‍य और आकर्षक लगे पर इसके पीछे एक खतरनाक विज्ञान छिपा है। इसमें कार्बाइड और पानी की रासायनिक प्रतिक्रिया से उत्पन्न गैस का दबाव एक विस्फोटक ध्वनि पैदा करता है। यही तेज दाब जब गलत दिशा में फैलता है तब यह आँखों, कानों, चेहरे और शरीर के किसी भी भाग को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचा देता है। बच्चों की जिज्ञासा और कार्बाइड गन के असुरक्षित होने की जानकारी न होना उनके लिए मुसीबत का कारण बन गया। इस सबके बाद भी प्रश्‍न यह है कि इतना खतरनाक खिलौना सरेबाजार कैसे बिक रहा था? किसकी अनुमति से यह अमानक और असुरक्षित वस्तु बेची गई और शस्‍त्र व विस्‍फोटक पर नियंत्रण करने की जिम्‍मेदारी रखने वाले सरकारी अधिकारियों ने इस पर रोक क्यों नहीं लगाई?

आतिशबाजी और विस्फोटक पदार्थों के विक्रय की अनुमति और नियंत्रण जिला प्रशासन द्वारा दी जाती है। बिना अनुमति या लाइसेंस के कोई भी व्यक्ति इस प्रकार का पदार्थ न तो खरीद सकता है और न बेच सकता है। इसके बाद भी इन गनों का बिकना प्रशासनिक लापरवाही और संवेदनहीनता का बड़ा उदाहरण है। दीपावली के समय हर वर्ष प्रशासन द्वारा सुरक्षा के लिए दिशानिर्देश जारी किए जाते हैं, पुलिस द्वारा निरीक्षण की बातें की जाती हैं परंतु इस बार क्‍या यह सारी प्रक्रिया कागज़ों तक सीमित रह गई। राजधानी भोपाल में ही यदि 189 बच्चे इस हादसे का शिकार बन गए तो यह किसी की व्यक्तिगत गलती से अधिक एक सामूहिक प्रशासनिक विफलता है।

नेत्र चिकित्सक बताते हैं कि इस प्रकार की चोटें सामान्य पटाखों से कहीं अधिक गंभीर होती हैं। कार्बाइड से उत्पन्न गैस के तीव्र विस्फोट से आँखों का कॉर्निया फट जाता है, रेटिना जल जाती है और कई बार आँखों की संरचना ही नष्ट हो जाती है। कई मामलों में तो डॉक्टरों को मजबूरी में पूरी आँख निकालनी पड़ी है। पीडि़त बच्चों में से अधिकांश की उम्र आठ से पंद्रह वर्ष के बीच है। यह वह उम्र है जब उनकी आँखों में सपनों के रंग भरे होते हैं। अब उनकी आँखें हमेशा के लिए अंधकार में डूब चुकी हैं। माता-पिता की यह पीड़ा शब्दों में बयान नहीं की जा सकती। कुछ क्षण पहले तक जो बच्चा दीपावली की खुशी में झूम रहा था अगले ही पल अस्पताल के अंधेरे वार्ड में बेसुध पड़ा है।

यह त्रासदी केवल प्रशासनिक विफलता नहीं बल्कि सामाजिक असावधानी का परिणाम भी है। हमें स्वीकार करना होगा कि समाज के रूप में हम बच्चों को सुरक्षित वातावरण देने में असफल रह जाते हैं। दुकानदारों ने मुनाफे के लालच में इन गनों को धड़ल्ले से बेचा, अभिभावक यह मान बैठे कि यह केवल पटाखे का हल्का विकल्प है और प्रशासन ने अपनी निगरानी-नियंत्रण की जिम्मेदारी को नज़रअंदाज़ कर दिया। अब जब परिणाम इतने भयानक रूप में सामने हैं तो हर किसी को आत्ममंथन करना होगा कि आखिर हमारी संवेदनशीलता कहाँ खो गई?

कानून की दृष्टि से देखें तो कार्बाइड जैसे रासायनिक पदार्थ का इस प्रकार उपयोग करना स्पष्ट रूप से अपराध है। भारतीय कानूनों के अंतर्गत कार्बाइड का विक्रय या प्रयोग नियंत्रित औद्योगिक वातावरण में ही किया जा सकता है। बाजार में इसका खुला विक्रय और बच्चों के हाथों में पहुँचना इन कानूनों का खुला उल्लंघन है। प्रशासन के पास न तो इस सामग्री के लाइसेंस की कोई स्वीकृति है और न ही इसके उत्पादन का कोई पंजीकरण फिर यह बाजार तक पहुँची कैसे? क्या निरीक्षण की प्रक्रियाएँ केवल नाम मात्र की रह गई हैं?

समय आ गया है कि सरकार और प्रशासन इस घटना को केवल दुर्घटना न मानें बल्कि इसे गंभीर अपराध के रूप में लें। दोषियों की पहचान कर उनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए। साथ ही इस प्रकार के जुगाड़ उत्पादों के निर्माण और विक्रय पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। बच्चों को सुरक्षित उत्सव मनाने की जानकारी देने के लिए स्कूलों में जागरूकता अभियान चलाना अनिवार्य होना चाहिए। अभिभावकों को यह सिखाना होगा कि वे अपने बच्चों को यह समझाएँ कि दीपावली का अर्थ विस्फोट नहीं बल्कि प्रकाश, जागरूकता और आनंद है।

यह घटना केवल उन परिवारों के लिए तो त्रासदी है ही जिनके बच्चे इससे प्रभावित हुए हैं इनके साथ ही यह पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है। हर वर्ष दीपावली के समय हम पर्यावरण प्रदूषण और पटाखों से होने वाली चोटों की चर्चा करते हैं, कुछ दिन के अभियान चलाते हैं और फिर सब भूल जाते हैं। इस बार यह विस्फोट हमारी चेतना को झकझोर देने वाला है। प्रभावितों में से कई बच्चे अब जीवन भर किसी दीपक की लौ नहीं देख पाएँगे। क्या हम इस पीड़ा को केवल आँकड़ों में समेट देंगे या इससे कुछ सीखेंगे?

दीपावली का असली अर्थ तभी सार्थक होगा जब हम रोशनी फैलाने के साथ विवेक भी जगाएँ। इस बार यह संकल्प लेना होगा कि अगली दीपावली सुरक्षा, जागरूकता और संवेदनशीलता की दीपावली भी होगी। इसके लिए समाज को सजग और प्रशासन को उत्तरदायी बनना होगा। यदि अब भी हमने सबक नहीं लिया तो आने वाले वर्षों में यह अंधकार और गहराता जाएगा।

दीपावली का संदेश यही है कि प्रकाश से अंधकार को पराजित किया जाए। समाज को देखना होगा कि कहीं हमारी लापरवाही, असंवेदनशीलता और मौन स्वीकृति के रूप में अंधकार बाहर न होकर हमारे भीतर तो नहीं है। इस अंधकार को मिटाने के लिए ज़रूरी है कि हम न केवल दीये जलाएँ, बल्कि जिम्मेदारी का भी दीप जलाएँ। तभी बच्चे दीपावली के दीयों की चमक में अपनी आँखें झिलमिलाते हुए देख सकेंगे।
(लेखक स्‍वतंत्र पत्रकार हैं)